Prithviraj Chauhan बाल जीवन :-
पृथ्वी राज का जनम प्रसिद्ध चौहान वंश में विक्रम संवत 1115को हुआ था |इनकी माता का नाम कमलावती तथा पिता का नाम सोमेश्वर राव जी था |जब पृथ्वी राज चौहान का जनम हुआ उस समय इन के पिता ने अजमेर जो राजस्थान में है को अपनी राजधानी बनाया हुआ था |उस समय अजमेर अपने वैभव ,कीर्ति तथा सुशासन के कारण प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था |इनका जनम काफी मन्नतों के बाद हुआ था अतः इनके जनम तथा मृत्यु को ले कर कई भविष्यवानियाँ की गई |उनको मारने के षड्यंत्र रचे गये ,परन्तु वे बचते चले गये |मात्र जब या 11 वर्ष के थे तभी इन के सिर से पिता का साया उठ गया |इसके बावजूद इन्होने अपना उत्तरदायित्व बड़ी योग्यता से निभाया |
पृथ्वी राज का एक घनिष्ट मित्र था जिसका नाम चंदर वरदाई था ,जो बाद में दिल्ली के शासक हुए और उन्होंने दिल्ली में पुराने किले का निर्माण किया जिसे पिथोर गढ़ नाम दिया गया था |
बाल्यावस्था:-
पृथ्वी राज का बचपन समाप्त होते होते उनकी बहादुरी की प्रशंसा चारों ओर फैलने लगी |पृथ्वी राज के नानाजी के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी की उनकी मृत्यु के पश्चात् राजभार कौन संभालेगा | क्योंकि उनके कोई पुत्र नहीं था |अतः उन्होंने पृथ्वी को यह कार्यभार सौंप दिया सन 1166 में महाराज अंग्पाल की मृत्यु के पश्चात् पृथ्वी राज चौहान को दिल्ली की गद्दी पर राज्य के सिहांसन पर बैठा दिया गया |
दिल्ली पर आक्रमण :-
जिस समय पृथ्वी राज को दिल्ली का शासक बनाया गया उस समय अजमेर का शासक पृथ्वी के पिता के हाथों में था |उन क पिता तथा मालवा के राजा में दुश्मनी थी ,इसलिए पृथ्वी की बढती हुई कीर्ति मालवा के रजा से सहन नहीं हो रही थी |पृथ्वी अजमेर में नही रहते थे अतः मालवा के रजा ने अजमेर पर आक्रमण कर दिया |साथ ही पृथ्वी को दिल्ली का राज्य त्याग करने के लिए बाध्य किया जाने लगा |
मोहम्मद गौरी :-
जैसा की हम जानते हैं किपृथ्वी से पहले दिल्ली पैर अनंगपाल राज्य कर रहे थे |उस समय में दिल्ली अपनी उन्नत स्थिति के लिए प्रसिद्द थी|उन्होंने हे दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ से बदल कर दिल्ली रखा था |इस समय पृथ्वी की आयु 16 वर्ष थी |और वे एक कुशल योद्धा भी थे अतः राजकाज का भार वे बखूबी निभाने लगे |उस समय पूरा पंजाब पर मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी का शासन था |वह पंजाब के भटिंडा से शासन चलाता था |और पृथ्वी पंजाब को भी जीतना चाहता था |वह जनता था की गौरी से युद्ध किये बिना पंजाब को पाना मुश्किल है |इसलिए उसने अपनी विशाल सेना को ले कर गौरी पर आक्रमण कर दिया |लेकिन यह युद्ध परिणाम रहित रहा |यह युद्ध तराइन नामक स्थान पर होने के कारन इसे तराइन का युद्ध भी कहा जाता है|पृथ्वी राज ने इसमें बहुत सी संपदा हासिल की |
पृथ्वी की सेना :-
पृथ्वी राज एक कुशल शासक थे इसलिए अपने राज्य के विस्तार तथा सुरक्षा हेतु हमेशा तत्पर रहतेथे |कहते हैं उनकी सेना बहुत विशाल थी |सेना ने कई युद्ध जीते थे |उनकी सेना में करीब 3 लाख सैनिक तथा 300 हाथी और कई घुड़सवार शामिल थे |किन्तु बाद में जयचंद की गद्दारी के कारन तथा अन्य राजपूत राजाओं के असहयोग की वजह से पृथ्वी राज मोहम्मद गौरी से दूसरा युद्ध हार गये|
राजकुमारी संयोगिता और पृथ्वी राज चौहान प्रकरण :-
पृथ्वी राज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी इतिहास में अविस्मरनीय है |जयचंद जो मन हे मन पृथ्वी राज से ईर्ष्या रखता था ,ने पृथ्वी के जीवन में हमेशा एक खलनायक की भूमिका निभाई |जयचंद संयोगिता के पिता थे |वह हमेशा पृथ्वी राज को नाचा दिखाने का प्रयास करते रहते थे | एक बार जयचंद ने अपनी पुत्री का स्वयंवर का आयोजन किया |जयचंद सपने में भी अपनी पुत्री का विवाह पृथ्वी के साथ करने की नहीं सोच सकते थे |इसलिए उसने पुत्री के स्वयम्वर में पूरे देश के राजाओं को आमंत्रित किया सिर्फ पृथ्वी को न बुला कर उनका अपमान करना चाहा |पृथ्वी को अपमानित करने के लिए जयचंद ने पर्थ्वी राज की मूर्ति को द्वारपाल के स्थान पर रखवाई |लेकिन पृथ्वी को जब यह सब पता चला तो उसने स्वयम्वर की भरी सभा में आकर संयोगिता का अपहरण कर के अपने रियासत में ले गये |और दिल्ली आकर दोनों ने विधि विधान से विवाह रचाया |कहते हैं पृथ्वी तथा संयोगिता एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे ,वे दोनों केवल चित्र देखकर एक दुसरे के प्यार में डूब गये थे |इस प्रकरण के बाद पृथ्वी तथा जयचंद की दु
श्मनी और भी बढ़ गई |
पृथ्वी राज चौहान की मृत्यु :-
पृथ्वी राज चौहान एक वीर योद्धा थे ,लेकिन उनका अंत अच्छा नही हुआ |मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध में हार के पश्चात उनको बंदी बनाकर रखा गया |उन्हें भयंकर यातनाएं दी गयीं | यहाँ तक की उनकी आँखों को गरम लोहे के सरियों से जलाया गया और वे अपनी आँखों की रौशनी खो बैठे |पृथ्वी राज चौहान और चंदरबरदाई ने अपनी मित्रता की मिसाल पेश करते हुए भरी सभा में एक दुसरे के जीवन लीला को समाप्त
कर दिया था |जब संयोगिता को यह पता चला तो उसने भी अपना जीवन त्याग कर दिया |
पृथ्वी राज चौहान की तलवार :-
कहते हैं की किसी भी शासक के प्रसिद्द होने के पीछे एक बड़ा कारन होता है उसकी युद्ध क्षमता |और पृथ्वी राज की युद्ध क्षमता किसी सी छुपी नहीं है |वह एक वीर शासक थे |यहाँ तक की उनकी तलवार अज भी कोटा में राव माधो सिंह ट्रस्ट म्यूजियम में संरक्षित है |इनकी तलवार की लम्बाई 38 इंच है और इस पर सोने से बनी मूठ चार इंच की है |यह 790 साल पुरानी धरोहर है |
पृथ्वी राज चौहान के बारे में संक्षिप्त अनुच्छेद :-
पृथ्वी राज चौहान का शाशनकाल सन 1178 से 1192 तक मन जाता है |ये चौहान वंश के हिन्दू क्षत्रिय रजा थे |इन्होने 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर और दिल्ली पर राज्य किया |ये भारत के अंतिम हिन्दू राजा माने जाते हैं |इनकी तेरह रानियाँ थीं |जिनमे से संयोगिता सबसे अधिक प्रसिद्द रहीं |पृथ्वी राज ने सबसे अधिक युद्ध मोहम्मद गौरी के साथ किये |मोहम्मद गौरी एक कपटी मुस्लिम राजा था |
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