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Mahadevi Varma Biography (Hindi) – महादेवी वर्मा की जीवनी

November 12, 2019 By Hindini Leave a Comment

हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार  प्रेमचंद जी को “ साहित्य सम्राट “ कहा  गया  है तो वहीँ  महादेवी  वर्मा को” साहित्य साम्राज्ञी” की संज्ञा दी गयी है |वे अपने सम्पूर्ण जीवन में साहित्य की साधिका रहीं |उन्होंने अपना पूरा जीवन इलाहाबाद में रह कर साहित्य को अर्पित कर दिया था |उन्होंने अपने साहित्य में समाज का असली आईना सामने रखा था |उनकी रचनाओं में भारतीय समाज में स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों और उनकी दुर्दशा का चित्रण मिलता है जिन्हें बदलने के लिए उन्होंने  समाज का ध्यान इस ओर खींचा |

Mahadevi verma

महादेवी वर्मा  को  हिंदी साहित्य के छायावाद के चार स्तंभों में से एक थीं |उन्होंने गद्य के साथ साथ पद्य में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया है |वे विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं |हिन्दी साहित्य के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने उनको “सरस्वती “ की संज्ञा दी थी |उनकी रचनाओं में मीरा की विरह वेदना देखने को मिलती है इसलिए उन्हें आधुनिक युग की “ मीरा “  भी कहा जाता है |

महादेवी वर्मा कवयित्री होने के साथ साथ एक अच्छी समाज सुधारक भी थीं | उन्होंने समाज में महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए महिला सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया तथा महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास किये |यहाँ तक कि उन्होंने महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए जागृत किया और अधिकारों को पाने के लिए कई क्रांतिकारी कदम भी उठाये |

उन्होंने अपनी रचनाओं  को समाज में बदलाव लाने का साधन बनाया |उनकी कुछ रचनाएं ऐसी थीं जिनमे  महिलाओं  के प्रति समाज  में चल  रही संकीर्णता तथा तुच्छ मानसिकता पर प्रहार करती  थी | उनकी रचनाओं में महिलाओं के शोषण का मार्मिक चित्रण मिलता है |उनकी एक खास रचना” श्रंखला की कड़ियाँ “ में महिलाओं की दुर्दशा  का भावपूर्ण एवं ह्रदय को छू लेने वाला चित्रण मिलता है |

 जीवन परिचय –

  • पूरा नाम –                         महादेवी वर्मा
  • जन्म और जन्मस्थान –           26 मार्च 1907,फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश )
  • पिता का नाम –                    श्री गोविन्द वर्मा
  • माता का नाम –                    श्रीमती हेमरानी देवी
  • पति का नाम –                     डॉ. रूपनारायण वर्मा
  • शिक्षा  –                              एम.ए. (संस्कृत )
  • मृत्यु  –                               11 सितम्बर 1987 (80 वर्ष ),प्रयाग उत्तर प्रदेश

महादेवी वर्मा अद्भुत व्यक्तित्व और विलक्षण प्रतिभा की धनी थी |उन्होंने हिंदी साहित्य को कई संस्मरण ,रेखाचित्र ,निबन्ध ,ललित निबंध ,कहानियां आदि से नवाज़ा है |आज भी उनकी लिखी गई रचनाएं विद्यालयों में पढाई जाती हैं |उन्होंने गद्य -साहित्य में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है |उनकी हिंदी पद्य- रचनाएँ भी बहुत मशहूर है जैसे –

  • सप्तपर्णा   (1959) संस्कृति- चित्रण
  • नीहार      (1930)-गीत काव्य संग्रह
  • रश्मि       (1931)-कविता संग्रह
  • नीरजा      (1934 ) चिंतन -दर्शन
  • सांध्यगीत   (1936 )-विरह -वेदना ,सामंजस्य
  • दीपशिखा   (1942 ) प्रेम भावना
  • प्रथम आयाम  (1974 ) कविता -संग्रह
  • अग्निरेखा      (1990 ) कविता -संग्रह

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इनके अलावा उन्होंने बाल साहित्य में भी अपने योगदान दिया है |उन्होंने बचपने को बखूबी उतारा है |उनकी कुछ रचनाये जो बच्चों के लिए है उनमे ठाकुर जी भोले  हैं  तथा आज खरीदेंगे हम ज्वाला आदि बहुत चर्चित हैं |

प्रमुख गद्य -साहित्य 

महादेवी वर्मे ने गद्य और पद्य दोनों में ही अपनी उत्कृष्ट पहचान बनायीं है |वैसे तो उनकी बहुत सी रचनाए हैं लकिन उनमे से कुछ  प्रसिद्ध  रचनाएं इस प्रकार हैं –

  • प्रसिद्द कहानी – गिल्लू तथा अन्य क हानियाँ
  • ललित निबंध -क्षणदा
  • निबंध -संकल्पिता और श्रंखला  की  कड़ियाँ
  • संस्मरण -पथ के साथी ,मेरा परिवार
  • रेखाचित्र -स्मृति की रेखाएं तथा अतीत के चलचित्र
  • निबंध संग्रह -हिमालय
  • भाषण संग्रह -संभाषण

साहित्य में दिए गये उनके योगदान के लिए महादेवी वर्मा को कई पुरस्कारों तथा सम्मान से नवाज़ा गया है |

प्रारम्भिक जीवन 

हिंदी साहित्य की महान कवयित्री महादेवी वर्मा जी का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में  हुआ था | उनका जन्म एक ऐसे परिवार में  हुआ था जहाँ कई वर्षों से किसी कन्या ने जन्म नहीं लिया था | इस कारण  उन्हें शुरू से ही बहुत लाड़ -प्यार से रखा गया और उनकी परवरिश बहुत अच्छी तरह से हुई |

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महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द वर्मा एक शिक्षक थे और साथ ही वकालत भी जानते थे | महादेवी वर्मा जी अपने परिवार की सबसे बड़ी बेटी थीं | उनकी माता श्रीमती हेमरानी एक आध्यात्मिक महिला थीं ,जो हमेशा ईश्वर की भक्ति में लीन रहती थीं | उनको पुराणों तथा वेदों में विशेष रूचि थी | यही कारण है कि महादेवी वर्मा का भी ईश्वर में अटूट विश्वास था |वे बौद्ध धर्म से विशेष रूप से  प्रभावित थीं |

महादेवी वर्मा की शिक्षा 

महा देवी बचपन से ही बहुत मेधावी थी | इसलिए उनके माता -पिता ने शिक्षा में उनका रुझान देखते हुए उहने घर में ही संस्कृत ,अंग्रेजी  और संगीत आदि की शिक्षा दिलाने का प्रबंध किया |उन्होंने  1912  में अपनी शुरूआती पढाई इंदौर के एक मिशन स्कूल से की |बताना चाहेंगे कि महादेवी वर्मा को बचपन से ही लिखने का बहुत शौक था | जब वे केवल 7 वर्ष की थीं तभी उन्होंने कवितायेँ लिखना शुरू कर दिया था |

स्कूली शिक्षा के पश्चात उन्होंने 1925 में जब मैट्रिक की परीक्षा पास की तब से उनकी कविताओं ने उन्हें प्रसिद्धि दिला दी थी | उनके चर्चे पूरे देश में होने लगे थे |बड़े बड़े अखबारों में उनकी कविताएँ छपने लगी थी और  उनकी लोकप्रियता दिनोदिन बढती जा रही थी |

इसके बाद महादेवी वर्मा जी ने इलाहबाद के क्रोस्थवेट  कोलेज  में दाखिला लिया |इस दौरान भी वे लिखती रही |जैसे -जैसे महादेवी वर्मा बड़ी हो रही थी वैसे -वैसे उनको समाज में हो रहे कार्य कलापों से यह समझ आने लगा था कि समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं है  इसलिए उन्होंने अपने कलम को इसका हथियार बनाया और वे स्त्री के अधिकारों के बारे में लिखने लगीं |

इसके पश्चात 1932 में महादेवी वर्मा ने उच्च शिक्षा प्राप्तकी और   इलाहबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत में  एम .ए  की उपाधि प्राप्त की |इसी दौरान उनकी दो रचनाएं  नीहार और रश्मि प्रकाशित हो चुकी थीं जिन्हें पाठकों ने बहुत पसंद किया और उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी |

वैवाहिक जीवन 

प्रख्यात लेखिका के समय में बाल विवाह का प्रचलन था | इसलिए सन 1916 अर्थात जब वे मात्र 9 वर्ष की रही होंगी तब उनका विवाह डॉ . स्वरूप  नारायण  के साथ कर दिया गया |हालांकि उन्होंने विवाह को अपने लेखन और शिक्षा में बाधा नहीं बनने दिया और छात्रवास में रहकर ही अपनी शिक्षा पूर्ण की |

महादेवी वर्मा अन्य  स्त्रियों से अलग थीं | उनका ध्यान सिर्फ लेखन में ही लगा रहता था |साहित्य ही मानो उनका जीवन -साथी बन गया हो |प्रेम संबंधों और  पारिवारिक  बंधनों में वे बंध कर नहीं रहना चाहती थी |फिर भी अपने पति से उनके रिश्ते अच्छे थे | कहा जाता है कि उन्होंने अपने पति से दूसरा विवाह कर लेने को भी कहा पर उन्होंने नहीं किया | अपने पति की मृत्यु के पश्चात वे पूर्णतया प्रयागराज इलाहबाद में ही आकर बस गई |और मृत्युपर्यन्त यहीं रहीं |

भाषा शैली 

महादेवी वर्मा  की रचनाएं आसान और बेहद सरल भाषा में हुआ करती हैं |इनकी लेखन शैली पाठकों को सुगमता से समझ आती है |उन्होंने अपनी रचनाओं को न सिर्फ हिंदी में लिखा बल्कि  उन्होंने अन्य भाषाओं   जैसे संस्कृत ,उर्दू ,बंगला  अंग्रेजी आदि  के शब्दों का अपनी रचनाओं में बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल किया है |संस्कृत के वे बहुत बड़ी ज्ञाता रहीं |

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महादेवी वर्मा जी ने हिंदी साहित्य को बहुत ऊँचे  शिखर पर पहुँचाने में  योगदान दिया है |उनकी रचनाओं में व्यंग्यात्मक ,विवेचनात्मक ,भावनात्मक ,वर्णनात्मक  और आलंकारिक  शैलियों का समावेश है |उन्होंने अपनी रचनाओं में मुहावरों ,लोकोक्तियों और अलंकारों का प्रयोग कर के और भी रोचक बनाया है | हिंदी भाषा को जो मुकाम हासिल हुआ वह इन्हीं की देन है |

समाज सुधारक और शिक्षिका 

महादेवी वर्मा ने समाज को सुधारने के लिए अपनी कलम का इस्तेमाल किया | उन्होंने अपनी लेखनी को समाज को सुधारने के लिए प्रयोग में लिया | वे एक अच्छी शिक्षिका भी रहीं |उन्होंने भारतीय समाज में स्त्रियों की दयनीय  स्थिति को सुधारने और उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाने के भरपूर प्रयत्न किये | उनकी मार्मिक लेखन  शैली से  समाज में बदलाव की किरण दिखाई देती है |

समाज में स्त्री को उचित स्थान दिलाने का उन्होंने भरपूर प्रयास किया | वे एक महान समाज सुधारक रहीं | वे महात्मा बुद्ध के उपदेशों  से बहुत प्रभावित रहीं  | इस धर्म में उनकी बहुत  आस्था थी  |साथ ही देश में हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा |

महादेवी एक कुशल शिक्षिका भी रहीं | उन्होंने प्रयाग महिला  विद्यापीठ में एक शिक्षिका के तौर पर अध्यापन कार्य भी किया |साथ ही वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति पद पर भी रहीं |इसके अलावा उन्होंने देखा की यदि पुरुषों का कवि सम्मलेन हो सकता है तो महिलाओं का क्यों नहीं |इसके लिए उन्होंने  प्रयास किये और सबसे पहला महिला कवि – सम्मलेन का आयोजन महिला विद्यापीठ में आयोजित करवाया |

निधन 

हिंदी साहित्य की युग प्रवर्तक मानी जाने वाली महादेवी ने मानो जन्म ही साहित्य की साधना के लिए हो | उन्होंने अपना पूरा जीवन इलाहबाद में रहकर साहित्य की पूजा  की |उनका हिंदी साहित्य को दिया गया योगदान आज भी उतना ही महत्वपूर्ण ही जितना उस समय था |उनको  साहित्य की सरस्वती की  संज्ञा दी गयी |उनकी दूरदर्शी सोच और महान विचार तथा सृजनात्मक शैली ने हिंदी साहित्य को चरम पर पहुँचाया है एक अद्भुत व्यक्तित्व की धनी तथा  विलक्षण प्रतिभा से ओत प्रोत महादेवी वर्मा ने 11 सितम्बर 1987 को इस दुनिया को अलविदा कहा |

सम्मान और पुरस्कार 

पुरस्कार सूची

  • 1934 :सेकसरिया पुरस्कार
  • 1942 :द्विवेदी पदक
  • 1943 :मंगला प्रसाद पुरस्कार
  • 1943 :भारत भारती पुरस्कार
  • 1956 :पद्म भूषण
  • 1979 :साहित्य अकादेमी फेलोशिप
  • 1982 :ज्ञानपीठ पुरस्कार
  • 1988 :पद्म विभूषण

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