1. परिश्रम का फल
एक बार एक महात्मा अपने आश्रम में प्रवचन दे रहे थे | प्रवचनों की समाप्ति पर सब चले गए तभी एक भोला नाम का व्यक्ति महात्मा जी के पास आया और विनती करते हुए बोला –
“महाराज मुझे गरीबी से पीछा छुड़वाने का कोई उपाय बताओ | “महात्मा कुछ समय शांत रहे फिर बोले -तुम तीन दिन बाद आना मैं तुम्हारी मदद करूँगा | ”
ठीक तीन दिन बाद भोला महात्मा के आश्रम में पहुँच गया | उसे देख कर महात्मा बोले कि तुम तो वचन के पक्के निकले |
तुम्हारी मदद करने से पहले मुझे तुम से एक काम है | भोला बोला – महाराज कहिये मैं गरीब आपकी क्या मदद कर सकता हूँ ?
महात्मा ने कहा कि आश्रम में कई साधू महात्मा आते रहते हैं, लेकिन यहाँ हमेशा पानी की कमी रहती है यहाँ एक कुआँ है जो बहुत समय से सूखा पड़ा है | मैं चाहता हूँ कि तुम उस कुऍं को खोदने में मदद करो | भोला सहज ही तैयार हो गया | उसने कहा महाराज -यदि आप मेरी गरीबी दूर करने में मदद करने को तैयार हैं तो मैं भी आपका यह काम कर देता हूँ | लाइए फावड़ा दीजिये | महात्मा ने कहा -कुवें के पास पहुंचो | वहां सब इंतज़ाम है |
भोला ने कुआँ खोदना शुरू किया | जब वह कुआँ खोद रहा था तो उसको मिटटी के नीचे एक मटका मिला ,जिसका ढक्कन बंद था | भोला ने उस मटके को उठाया और महात्मा के पास गया | महाराज से बोला कि यह मुझे मटका कुऍं से मिला है | महाराज बोले की इस मटके का ढक्कन तो खोलो | जैसे ही भोला ने मटके का ढक्कन खोला उसमे देखा कि मटका चाँदी के सिक्कों से भरा था | उसने महाराज को मटका देना चाहा | लेकिन महात्मा ने कहा कि अब यह मटका तुम्हारा है | भोला ने आश्चर्य से पुछा कि महाराज ऐसा क्यों ? साधू ने जवाब दिया की यह तुम्हारी मेहनत से मिला है | अर्थात यह तुम्हारे परिश्रम का फल है |अब तुम इन सिक्कों से कोई कारोबार शुरू करो जिस से तुम्हारी गरीबी दूर हो जाएगी | भोला की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | उसको परिश्रम का फल मिल गया था |
शिक्षा – परिश्रम का फल व्यर्थ नहीं जाता |
2 . बासी भोजन
किसी गाँव में एक लड़का रहता था | वह एक आज्ञाकारी लड़का था | लेकिन उसकी एक ही आदत गंदी थी कि वह दिन भर कोई काम नहीं करता था | उसके पिता का स्वर्गवास हो चुका था और उसकी माँ ही उसका लालन -पालन करती थी | माँ जब भी उसे भोजन परोसती तो कहती – ले बेटा , बासी भोजन खा ले | वह खा लेता | जब वह बड़ा हो गया तो उसकी माँ को यह चिंता सताने लगी कि यह कब कोई काम करके कमायेगा ?
माँ ने इसका एक उपाय सोचा और उसका विवाह यह सोच कर करा दिया कि ज़िम्मेदारी आएगी तो कमाने लगेगा | जब उसका विवाह हो गया तो उसकी पत्नी भी जब भोजन परोसती तो यही कहती कि यह लो ,बासी भोजन खा लो | पत्नी की यह बात सुन कर उसको बहुत गुस्सा आया कि मेरी माँ तक तो ठीक है ,अब मेरी पत्नी भी मुझे यह क्यों कहती है कि बासी भोजन कर लो |
एक दिन उसने अपनी माँ से पूछ ही लिया कि माँ आप लोग रोज़ मुझे बासी भोजन क्यों करने को कहते हो ? जबकि भोजन ताज़ा ही होता है | माँ ने उसको कहा -बेटा तुझे पता है क्या कि बासी भोजन किसे कहते हैं | उसने जवाब दिया कि सुबह या एक दिन पहले बनाया गया भोजन बासी भोजन कहलाता है |
तब माँ ने कहा सही बात है -देख बेटा , अब तू ही देख ,तेरे पिताजी का कमाया गया धन जिस से अपना घर चलता है वह बासी भोजन है | और जब तू खुद कमाकर लाएगा वह ताज़ा भोजन होगा | अब लड़के को माँ की बात समझ आ गयी | वह माँ से बोला -माँ अब मैं समझ गया कि जब तक व्यक्ति स्वयं कमाकर नहीं लाता तब तक उसका सम्मान नहीं होता | अब मैं खुद मेहनत कर के कमाऊंगा | और पूरे परिवार को ताज़ा भोजन कराऊंगा |
शिक्षा – दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय खुद मेहनत करना चाहिए |
3 .भविष्यवाणी
एक बार की बात है | किसी गाँव के कुछ पंडितों ने यह भविष्यवाणी की कि देश में आने वाले चार वर्षों तक पानी नहीं बरसेगा | अगर बीज बोयेंगे तो वे भी नहीं उगेंगे | पंडितों की यह बात सुन कर किसानों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया | लेकिन एक किसान रोज़ की तरह हल और बैल लेकर खेतों में काम करने निकल पड़ा |
जब किसान खेतों में हल चला रहा था तभी कुछ बादल ऊपर से गुज़र रहे थे | बादलों ने रुक कर किसान को हल चलाते देखा | उन्होंने रुक कर किसान से बात करने की सोची | जब उन्होंने किसान से पूछा कि क्या तुम्हें पता नहीं कि अगले चार वर्षों तक पानी नहीं बरसेगा ? किसान ने जवाब दिता -हाँ मुझे पता है |
फिर एक बादल ने पूछा कि फिर भी तुम खेतों में काम क्यों कर रहे हो ?
किसान बोला कि यदि मैं काम नहीं करूँगा तो काम करना ही भूल जाऊंगा | इसलिए मैं हल चला रहा हूँ | किसान की बात सुन कर बादल सोच में पड़ गए | तभी एक बूढ़े बादल ने कहा -मैं सोच रहा हूँ कि किसान की बात सही है | यदि हम भी चार वर्षों तक नहीं बरसेंगे तो हम बरसना ही भूल जायेंगे | चलो हम बरसें | बस फिर क्या था | बादल मूसलाधार बरसने लगे | चारों ओर नदी नाले पानी से भर गए |
शिक्षा -हमें अभ्यास करना नहीं छोड़ना चाहिए |
4 . रूप बड़ा या गुण
एक बार जून की भयंकर गर्मी में राजा विक्रमादित्य अपने दरबार में गर्मी से लथपथ हो कर अपनी प्रजा की बातें सुन रहे थे |उनके दरबार में बहुत से विद्वान् और पंडित लोग थे |उन्हीं में से एक थे राजा के सलाहकार कालिदास |यों तो राजा और कालिदास बहुत अच्छे मित्र थे |वे एक दुसरे से मजाक में चुटकी लेते रहते थे |
कालिदास संस्कृत के प्रकांड पंडित थे |लेकिन दिखने में बहुत ही बदसूरत थे |गर्मी के कारण राजा के चेहरे पर जो पसीने की बूँदें थीं वह भी मोतियों की तरह सुंदर लग रहीं थीं क्योंकि राजा का रंग गोरा और रूप सुंदर था |इसके विपरीत कालिदास का चेहरा पसीने की बूंदों से और भी कुरूप लग लग रहा था |ऐसे में जब राजा ने कालिदास के चेहरे की ओर देखा तो उसका मज़ाक बनाने का मौका नहीं छोड़ा |
राजा ने कालिदास से कहा -“महाकवि आप संस्कृत के प्रकांड पंडित हैं |ज्ञान के भण्डार हैं ,लेकिन इनके साथ -साथ यदि भगवान् ने आपको रूप भी दे दिया होता तो कितना अच्छा होता |” महाकवि कालिदास ने उस समय तो कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप वहां से चल दिए |
दरबार से निकलते ही वह एक सुनार की दुकान पर पहुंचे |वहां उन्होंने सुनार से एक सोने की सुराही बनाने को कहा और घर चल दिए | अगले दिन सुबह उन्होंने दरबार में पहुँचते ही सबसे पहले दरबार में राखी मिटटी की सुराही को हटा कर वह सोए की सुराही रखवा दी |
तय समय पर दरबार की कार्यवाही शुरू हुई |गर्मी के कारण थोड़ी देर बाद राजा को प्यास लगी |राजा ने पानी पेश करने को कहा |सेनापति ने उस सोने की सुराही से एक गिलास पानी ले कर राजा को पेश किया |राजा ने एक घूँट पीते ही कहा यह किस मूर्ख ने पानी रखा है यहाँ ?
तभी कालिदास ने खड़े होकर झुक कर कहा – “महाराज वह मूर्ख मैं ही हूँ | “राजा कालिदास की बात को समझ गये | उन्होंने माफ़ी मांगते हुए कहा -“महाकवि !मुझे माफ़ कर दो | आज मुझे समझ आ गया कि रूप से बड़ा गुण है |हमे कभी भी किसी के रूप का मजाक नहीं बनाना चाहिए |”
शिक्षा -हमे किसी के रूप के बजाय गुणों को देखना चाहिए |
5 .बीरबल की खिचड़ी
एक बार राजा अकबर और बीरबल कहीं जा रहे थे | सर्दियों के दिन थे | तभी रास्ते में उनको एक तालाब दिखा जिसका पानी बेहद ठंडा था |राजा ने बीरबल से पुछा -बीरबल हमे बताओ कि इस ठन्डे पानी में क्या कोई पूरी रात खड़ा रह सकता है ?जाओ और एलान कर दो कि जो भी व्यक्ति इस तालाब के ठन्डे पानी में पूरी रात खड़ा रह कर दिखायेगा उसको एक हज़ार सोने की मुद्राएँ दी जाएँगी |
बीरबल ने ऐलान करा दिया | इसके कुछ समय बाद एक बूढा व्यक्ति दरबार में आया और शर्त के अनुसार पानी में खड़े रहने की इच्छा ज़ाहिर की | उस वृद्ध को देख कर बीरबल ने आश्चर्य से पुछा ‘-बाबा, आपको पता नहीं क्या कि इतनी कडाके की ठण्ड में कोई भी इस पानी में खड़ा होगा तो वह ठण्ड से मर जायेगा ?”
तभी वह वृद्ध बोला हाँ बीरबल मुझे पता है |लेकिन कुछ समय बाद ही मेरी बेटी का विवाह होने वाला है और मुझको उसके विवाह के लिए पैसे चाहिए | बीरबल ने उसको कहा -ठीक है ,शाम को आ जाना |
शाम को वह वृद्ध आ गया और शर्तानुसार पानी में उतर का खड़ा हो गया | रात गहराती गई और ठण्ड बढती गयी |पर वह वृद्ध ठिठुरता हुआ ठन्डे पानी में खड़ा रहा |उसी दौरान वह दूर महल में दिखाई दे रहीं रौशनी को देख कर गर्मी का अहसास करता रहा |और सुबह तक खड़ा रहा |
सबने सोचा था कि वह वृद्ध अवश्य मर चूका होगा | लेकिन जब उसको राजा सहित सबने जीवित देखा तो आश्चर्यचकित रह गये | बाहर निकलने पर राजा ने उस वृद्ध से पुछा की तुम बताओ कि हमे बताओ कि तुमने इस भरी सर्दी में भी अपनी रात कैसे गुजारी |
वृद्ध ने जवाब दिया कि मैंने दूर से महल की रौशनी को देख कर गर्मी का अहसास किया और रात काट ली | राजा बोला कि हम तुमको इनाम नहीं दे सकते क्योंकि तुमने हमारे महल की रौशनी का सहारा लिया ,इसलिए तुम शर्त हार गये | बीरबल को राजा की यह बात अच्छी नहीं लगी |
अगले दिन बीरबल ने अकबर राजा को अपने घर पर एक विशेष प्रकार की खिचड़ी खाने के लिए आमंत्रित किया | राजा अपने मंत्रियों को ले कर बीरबल के घर पहुँच गये | राजा को बहुत भूख लग रही थी | उसने बीरबल से कहा -जल्दी खिचड़ी पेश करो | मैं अब इंतज़ार नहीं कर सकता |बीरबल बोले -महाराज थोडा और इंतजार करना होगा |
राजा से रहा नहीं गया | उसने कहा चलो हमे भी दिखाओ तुम्हारी खिचड़ी | जब राजा ने देखा तो बीरबल नने बहुत ऊंचाई पर खिचड़ी का बर्तन लटका रखा था और नीचे से आग लगा रखी थी | राजा ने गुस्से में पुछा कि बीरबल मैं तो तुमको बहुत ग्यानी समझता हूँ |और तुम को इतना भी पता नहीं है कि इतनी ऊंचाई से भला खिचड़ी कैसे पकेगी ?
बीरबल ने राजा की तरफ मुस्कुराते हुए देख कर कहा – “महाराज ! यदि आपके महल से दूर से आती हुई रौशनी से कोई गर्मी प्राप्त कर सकता है तो खिचड़ी भी पाक सकती है |’ राजा बीरबल की बात को समझ गया |उसने उस वृद्ध को बुलवाया और उसे दोगुना धन देकर विदा किया |
शिक्षा – बिना सोचे समझे निर्णय नहीं लेना चाहिए |
6 . राजा का कपड़े
एक राजा था |उसे कपड़े बदलने का बहुत शौक था |वह दिन रात नये -नए कपडे पहन कर देखता रहता था |उसकी इस आदत से उसकी प्रजा बहुत दुखी थी क्योंकि वह राजा अपना बहुत सा धन सिर्फ कपड़ों पर ही खर्च कर देता था |अपनी प्रजा की समस्याओं से उसको कोई मतलब नहीं था |
एक बार दो धूर्त राजा के दरबार में आये |उनको राजा की कपडे बदलने की बुरी आदत का पता था |राजा से मिलने पर उन्होंने राजा से कहा कि हम दोनों प्रसिद्द बुनकर हैं |हम ऐसा कपडा बंनाना जानते हैं जिसे पहनने के बाद आप दुनिया के सबसे खूबसूरत राजा कहलायेंगे | हमारे बुने हुए कपड़ों की यह विशेषता है कि वे बुनते समय किसी को दिखाई नहीं देते | हमारे बुने हुए कपड़े सिर्फ मूर्खों को ही दिखाई देते हैं |
राजा धूर्तों की बातों से बहुत प्रभावित हुआ और उसने अपने मंत्रियों को कहा कि इन बुनकरों को जितना चाहें उतना धन दे दो |मंत्रियों ने उनको धन और एक बड़ा से कमरा दे दिया जिसमे उनको कपडा बुनना था | कुछ दिनों बाद राजा ने सोचा की क्यों न मैं जाकर कपडे देख आऊँ लेकिन यदि मुझे कपडे दिखाई नहीं दिए तो सब मुझे मूर्ख कहेंगे |इसलिए जिज्ञासा वश उसने मंत्रियों से कहा की जाओ और कपडे देख कर आओ |
मंत्री धूर्तों के कमरे में गए और उनसे पुछा कि कपडे बन गये तो दिखाओ | धूर्तों ने कहा कि तुम तो मूर्ख निकले | तुमको कपडा नहीं दिखा |मंत्री ने राजा के सामने अपने आप को मूर्ख कहलाने से बचने के लिए कपडे की बहुत तारीफ़ की | राजा की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा |
और अब वह दिन भी आ गया जब राजा को नए कपडे पहनने थे | सुबह दोनों धूर्त प्रकट हुए और राजा के कमरे में राजा को कपडे पहनाने का नाटक करने लगे |उन्होने राजा के पहने हुए सारे कपडे उतरवा दिए और इस तरह अभिनय किया मानो दुसरे कपडे पहना रहे हों |राजा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था |क्योंकि वह सोच रहा था की दुनिया के श्रेष्ठ कपडे मैंने ही पहने हैं क्योंकि ऐसे कपडे आज तक नहीं बने हैं जो दिखाई नहीं देते |जोश जोश में राजा कह उठा कि हम अब नगर भ्रमण के लिए जायेंगे ताकि सब लोग हमारे इस अनोखे वस्त्र को देख सकें |
बस फिर क्या था |राजा जहाँ भी जाता लोग उसको देख कर हंस रहे थे |राजा तो अपने ही उन्माद में डूबा था |उसने लोगों के हंसने की तरफ ध्यान ही नहीं दिया | कुछ दूर जाने के बाद भीड़ में से एक छोटा बच्चा जोर से चिल्ला कर अपनी माँ से बोला -माँ ,मा राजा तो नंगे हैं | यह आवाज राजा के कान तक भी पहुँची | राजा सारा माजरा भांप गया और तुरंत अपने महल की ओर दौड़ा |इतने समय में दोनों धूर्त भाग चुके थे |
शिक्षा – अपने गलत शौक के लिए किसी को कष्ट नहीं देना चाहिए |
7 . मददगार कौन ?
एक बार एक किसान अपनी बैलगाड़ी में बहुत सारा अनाज भर कर अनाज मंडी की ओर जा रहा था | रास्ते में एक स्थान पर उसकी बैलगाड़ी के पहिये कीचड में फंस गये |किसान चिंता में पद गया और बोला -“हे भगवान् यह क्या हो गया ? अब मेरी मदद तुम ही करो भगवान् |मैं कैसे इस गाडी को बाहर निकालूँगा |”
इतने में एक पहलवान उसी रास्ते से गुजर रहा था |उसने उस किसान को दुखी देख कर पूछा -“तुम इतने परेशान क्यों हो ?किसान ने कहा कि मेरी गाडी कीचड़ में फंस गई है ,और भगवान् मेरी मदद नहीं कर रहे हैं |अब मैं अकेले कैसे इस गाडी को निकाल पाऊंगा |पहलवान साड़ी बात समझ गया |उसने किसान से कहा -‘तुम गाडी को पीछे जाकर धक्का लगा कर बैलों को जोर से ललकारो |”
किसान ने पहले बैलों के गले पर प्यार से हाथ फेरा फिर जोर से ढका देते हुए हुंकार लगाई |बस गाडी एक ही झटके में बहार निकल गई |उसने पहलवान को धन्यवाद देते हुए कहा कि यदि तुम नहीं आते तो मैं भगवान के भरोसे ही बैठा रहता |
तभी पहलवान बोला – “यदि मई चाहता तो तुम्हारी मदद कर सकता था | लेकिन तुम्हारी बात सुनने के पश्चात मैंने सोचा की क्यों न तुम्हें खुद यह काम करवाया जाये |भगवान् भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करते हैं |इसलिए पहले हमे प्रयास करना चाहिए फिर भगवान से मदद मांगनी चाहिए |”
किसान को पहलवान की बात समझ आ गयी |उसने इस बात को गांठ बांध ली कि हमे अपनी मदद खुद करने से भगवान् भी मदद करते हैं |आलसी व्यक्ति सिर्फ दूसरों के भरोसे ही बैठ जाते हैं |
शिक्षा -भगवान उसी की मदद करते हैं जो स्वयं की मदद करते है |
8 .सच्ची मित्रता
कृष्ण और सुदामा बचपन में एक ही गुरु के आश्रम में पढ़ा करते थे |आश्रम में दोनों घनिष्ठ मित्र थे |जब दोनों की शिक्षा पूर्ण हो गई तब वे दोनों अपने -अपने घर चले गये |और अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गये |कृष्ण द्वारका के राजा बन गये और सुदामा एक छोटे से गाँव में रहते थे |सुदामा गरीबी में जीवन यापन करते थे और अपनी पत्नी से कृष्ण के बारे मे अक्सर बातें किये करते थे |
तभी एक दिन सुदामा की पत्नी बोली कि तुम अपने मित्र से मिलने क्यों नही जाते |सुदामा ने मना कर दिया |जब उसके परिवार की हालत और भी अधिक खराब हो गई तब सुदामा ने कृष्ण से मिलने की योजना बनाई | उसकी पत्नी पड़ोस से जाकर थोड़े चावल मांग कर ले आई और कृष्ण को देने को कहा |
जैसे ही सुदामा कृष्ण के दरबार के बाहर पहुंचे दरबान ने उसका नाम पुछा |सुदामा ने अपना नाम बताते हुए कहा कि मुझे अपने मित्र कृष्ण से मिलना है और बोलना की सुदामा आया है |कृष्ण को जब दरबान ने सुदामा के आने की बात कही तो कृष्ण तुरंत उसका स्वागत करने के लिए दौड़ पड़े |उन्होंने सुदामा की दशा देखी और उसको गले लगा लिया |
सुदाम की पत्नी के द्वारा दी गई चावलों की पोटली को सुदामा छुपाने लगे |तभी कृष्ण ने उस से वह पोटली छीन ली और चावल खाने लगे |यह सब देख कर दोनों के आँखों से अश्रुधारा बह निकली |कृष्ण सुदामा का प्यार देख कर अभिभूत हो गये |
कुछ दिन रहने के पश्चात सुदामा ने कृष्ण से वापस अपने गाँव लौटने की इजाज़त मांगी |कृष्ण ने उसे लौटने की इजाज़त दे दी |अपने गाँव पहुँच कर सुदामा अपने घर को पहचान नहीं पाए |उसकी टूटी -फूटी झोंपड़ी की जगह एक सुन्दर सा महल बनवा दिया गया था और उसकी पत्नी कीमती वस्त्रों और गहनों से सजी हुई सुदामा का इंतज़ार कर रही थी |
सुदामा को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ |उसने कृष्ण को धन्यवाद दिया और अपनी दोस्ती को धन्य माना |जिसमे छोटा -बड़ा या अमीर गरीब का कोई भेद नहीं था |
शिक्षा -सच्ची मित्रता वही है जिसमे अमीर गरीब का भेद न हो |
9 .सच्चा पड़ोसी
नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था | उस पेड़ पर बहुत से पक्षियों ने घोसले बना रखे थे और इन घोंसलों में कई पक्षियों के बच्चे रहा करते थे |उसी पेड़ की जड़ों में चींटियों का परिवार रहता था |पक्षियों और चीटियों में आपस में बहुत प्रेम था |चीटियों के बच्चे कभी कभी पेड़ पर चढ़ कर दूर -दूर तक जंगल का नज़ारा देखते और पक्षियों से प्यारी -प्यारी बातें करते थे |
एक दिन चींटी का एक बच्चा फिसल कर पानी में गिर गया |चींटी के बच्चे को पानी में गिरे हुए देख कर सभी पक्षी उसको बचाने के लिए आ गये |उन्हने चींटी के बच्चे से कहा -परेशान मत होना |हम सब तुम्हारे साथ हैं |”इतने में कुछ पक्षियों पेड़ से कुछ पत्ते तोड़े और पानी में गिरा कर बच्चे से कहा कि तुम कोशिश करके एक पत्ते पर चढ जाओ | और वे उसके ऊपर साथ -साथ ही उड़ने लगे | बच्चा बड़ा हिम्मती था |उसने वैसा ही किया|जैसा उसे कहा गया | जैसे ही वह एक पत्ते पर चढ़ा ,एक पक्षी ने उसे अपनी चोंच में पकड़ कर उसक माँ के पास छोड़ दिया | माँ ने पक्षियों को बहुत धन्यवाद दिया |
इस घटना को कई दिन गुज़र गये |एक दिन पक्षियों के घोंसलों को देख कर एक शिकारीअपने दल -बल के साथ वहां आया |उसने अपने साथियों से कहा -“आज इन पक्षियों और इनके अण्डों से हमारी दावत हो जाएगी |तुम सब यहीं रुको |”इतना कह कर उसने पक्षियों के घोसलों की ओर निशाना साधा |उस पेड़ के नीचे चीटियों ने उनका वार्तालाप सुन लिया था |बिना देर किये उन्होंने शिकारी और उसके आदमियों पर हमला बोल दिया |बस फिर क्या था |शिकारी और उसके आदमी डर कर भाग गये |
शिक्षा -सच्चा पडोसी वही है जो मुसीबत के समय काम आये |
10 .नक़ल नहीं अक्ल
एक जंगल था |उस जंगल में एक शेर और शेरनी अपने चार बच्चों के साथ रहते थे |शेरनी बहुत मेहनती थी |वह बच्चों को सम्भालती और उनके लिए खाने का इंतजाम भी करती |लेकिन इसके विपरीत शेर बहुत सुस्त था |वह न तो शिकार करके लाता और न ही बच्चों को सम्भालता |बस हमेशा सोता रहता |
एक दिन बच्चे बहुत भूखे थे |और शेरनी को कोई शिकार नहीं मिला |वह घर आकर शेर पर बहुत क्रोधित हुई आयर बोली -“तुम कैसे पिता हो ? तुम्हारे बच्चे भूखे हैं और तुम्हे कोई चिंता ही नहीं है |तुमसे अच्छा तो गीदड़ ही है जो कम से कम शिकार की तलाश में जाता तो है |”
अपनी तुलना गीदड़ से होते देख शेर तिलमिला गया | वह तुरंत उठा और बोला -“देखो मेरी आँखें लाल हैं |मेरी पूँछ तनी हुई है |अब मैं शिकार कर के लौटूंगा |”
यह कह कर शेर बहार की तरफ दौड़ा |उसने कुछ ही दूरी पर एक बैल को देखा |बस फिर क्या था |मौका देख कर उस पर झपट पड़ा और बैल को मार कर शेरनी के सामने लाकर पटक दिया |
उनकी यह बात गीदड़ की पत्नी ने भी सुन ली थी |जब शेर शिकार लाया तो वह गीदड़ से बोली -“देखो आज शेर बैल का शिकार करके लाया है |तुम भी लाओ |”
गीदड़ी की बात सुन कर गीदड़ ने भी शेर की नक़ल करते हुए कहा -“देखो मेरी आँखें लाल है ? गीदड़ी बोली-“हाँ ” , फिर शेर ने पूछा -” मेरी पूंछ भी तनी है ? गीदड़ी ने जवाब दिया -“हाँ ” बस फिर क्या था |गीदड़ को जोश आ गया |
थोड़ी दूरी पर जाकर उसे एक बैल दिखा |उसने आव देखा न ताव |तुरंत बैल पर झपट पड़ा |बैल को गुस्सा आ गया |उसने अपने सींघों से गीदड़ को जोर से उछाल कर दूर पटक दिया |गीदड़ को बहुत सी चोटें आई |
जैसे – तैसे वह घर पहुँचा |घर जाकर उसने गीदड़ी से कहा -तुमने झूठ क्यों बोला ? न मेरी आँखें लाल थी और न ही मेरी पूंछ तनी थी |तभी आज मेरी यह दशा हुई है |
गीदड़ को उसकी पत्नी ने समझाया की तुमने शेर की नक़ल क्यों की ?तुम्हें समझदारी से काम करना चाहिए था |बहादुरी किसी की नक़ल करने में नहीं है बल्कि समझदारी से काम करने में होती है |इसलिए किसी की नक़ल करने की बजाय सोच -समझ कर काम करना चाहिए | गीदड़ को गीदड़ी की बात समझ में आ गयी |
शिक्षा -हमे नकल की बजाय अकल से काम लेना चाहिए |
11. मददगार कौन ?
जगन सिंह नाम का एक गाड़ीवान अपनी बैल गाडी में अनाज भर कर अनाज मंडी जा रहा था |रास्ते में उसकी गाडी कीचड़ से भरे गड्ढे में फंस गई |वह मदद के लिए इधर उधर देखने लगा | फिर उसने भगवान से कहा की मेरी मदद करो |तभी वहां से एक महाबली नामक व्यक्ति गुजर रहा था |उसने जगन से पूछा -“तुम क्यों इतने परेशान हो ?
जगन सिंह बोला -“मेरी गाडी कीचड़ में फंस गई है |अब मैं इसे कैसे निकाल सकता हूँ ?महाबली बोला – “तुम जब तक खुद प्रयास नहीं करोगे तब तक कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा |”अपने बैलों को ललकारो और पुचकार कर आवाज़ दो |साथ ही तुम भी जोर लगाकर गाडी को धक्का लगाओ |
इतना कह कर वह महाबली चला गया |अब जगन सिंह ने पहले बैलों को प्यार से हाथ फेरते हुए पुचकारा |फिर पीछे जाकर ज़ोर से हुंकार मारते हुए गाडी को धक्का लगाया |एक ही झटके में गाडी कीचड़ से बाहर आ गई |और वह ख़ुशी -ख़ुशी मंडी की तरफ चल दिया |उसको समझ आ गया था की भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करते हैं |
शिक्षा -अपने मददगार हम स्वयं होते हैं |
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